Brief description of living Kayastha according to different regions



fofHkUUk izns’kksa esa jgus okys dk;LFk dk laf{kIr o.kZu 

vc eSa fofHkUUk izns”k esa jgusokys dk;LFkksa ij ;Fkklk/; izdk”k Mkyrk gw¡A
caxky & caxky esa iz/kkur% pkj Jsf.k;ksa ds dk;LFk jgrs gSaA

¼d½ mRrj jk<h;
¼[k½ nf{k.k jk<h;
¼x½ caxt vkSj
¼?k½ okjsUnz A ;s Hksn LFkku ds dkj.k gSaA

;qDr izns”k esa tks fofHkUu izdkj ds dk;LFk feyrs gSa muesa ls JhokLro] “kdlsu] lw;ZZ/ot] vEc’V] xksM+ vkfn dbZ Js.kh ds dk;LFk igq¡ps FksA

^lqrjk* dqqyxzUFk ds vuqqqqlkj clq] ?kks’k] fe=] nRr] flag] izHk`fr mikf/k/kkjh dk;LFk vius dks {kf=;o.kZ ds vUrxZr Bgjkrs gSaA

¼cax ds tkrh; bfrgkl ^jkT;dk.M*½

fefFkyk& dukZVd oa”kh; egkjktk ukU;nso bZñ 11 “krkCnh dks fefFkyk inkiZ.k djrs le; vius lkFk fut vekR; dk;LFk dqy Hkw’k.k Jh/kj rFkk muds 12 lEcfU/k;ksa dks yk;s FksA ukU;nso ds leLr fefFkyk ij vkf/kiR; gksus ds ckN muds vekR; Jh/kj us vius cgqr ls cU/kq&ckU/koksa dks pkj pj.k esa fefFkyk cqyk;sA izFkeokj Jh/kj ,oa muds ckjg dqVqEc] nqljh ckj chl] rhljh ckj rhl vkSj pkSFkhokj vof”k’V dk;LFkksa dk vkxeu gqvk A fefFkyk esa cl tkus ds dkj.k mDr d.kZ dk;LFk uke ls izfl) gq,A vktdy ds eSfFky iaftdkj dk dguk gS fd egkjkt ukU;nso ds ?kjkus ls ysdj vksbuokj ?kjkus ds e/; le; rd dukZVd ds fefFkykoklh gksusokys fefFkyk ds dk;LFk ^Bkdqqj* dgykrs FksA ckn es vksbuokj ds oa”ktksa dks czkge.k ds ln`”k inoh Bhd ugha yxkA mUgksaus ukuk izdkj ls fopkj dj Bkdqj inoh dks vusdkusd inoh esa foHkDr fd;k A eSfFky dk;LFk esa nkl] nRr] nso] d.B] fuf/k] efYyd] ykHk] pkS/kjh] jax] vkfn inoh izpfyr gSA budk deZ dk.M eSfFky czkge.k dh rjg gksrk gS A fdUrq fookg iztkiR; gksrk gSA

Evidence and judgment the character of Kayastha



श्री चित्रगुप्त जी (कायस्थ) का वर्ण निर्णय

सर्वत्र यह प्रश्न सुनने को मिलता है की ब्रह्मा ने चार वर्णों ब्राहमण, क्षत्रिय, वैश्य, तथा शुद्र की रचना की | तत्पश्चात चित्रगुप्त का आविर्भाव हुआ | तब तो कायस्थ (चित्रगुप्त जी) को पंचम वर्ण में होना चाहिए | किन्तु मनुस्मृति, हारीत स्मृति, मिताक्षरा, शुक्रनीति, गरुड़पुराण, स्कन्दपुराण, पदमपुराण, आदि किसी भी शास्त्र से पंचम वर्ण का प्रमाण नहीं मिलता है | अतः चित्रगुप्तज को उक्त चार वर्णों के अंतर्गत ही होना चाहिए | कुछ लोगो का कहना है कि जब चार वर्णों के बाद कायस्थ का आविर्भाव हुआ है तो उसे शुद्र के अंतर्गत ही आना चाहिए |

दूसरी बात यह है की मनवादी धर्मशास्त्र में चित्रगुप्त या कायस्थ जाती का तत्त्व निर्णित नहीं हुआ है | किसी किसी स्मृति शास्त्र में चित्रगुप्त और कायस्थ का नाम पाया जाता है | परन्तु इससे यह नहीं समझा जा सकता कि कायस्थ कौन वर्ण है ?

अब हम इस विषय पर कुछ प्रमाण प्रस्तुत करना चाहते हैं जिससे चित्रगुप्तज (कायस्थ) के वर्ण के सम्बन्ध में ज्ञात हो सकता है | विष्णुपुराण, याग्यवलक्यपुराण, वृहत पुराण आदि ख्यात शास्त्रों से यह प्रमाणित होता है कि चित्रगुप्त यमराज के लेखक थे | कायस्थ का पर्यायवाची लेखक या राजाज्ञा का लेखक मन गया है | पहले हिन्दू राजसभा में लिखने के काम में कायस्थों के सिवा दुसरे नहीं रखे जाते थे | इसलिए कायस्थ या राजसभा के लेखक राजा का साधनांग समझे जाते थे | मनु संहिता के 8वें श्लोक के भाव में मेधातिथि ने लिखा है, जिसका अर्थ इस प्रकार है राजदत्त ब्रह्मोत्तर भूमि आदि का शासन, जो एक कायस्थ के हाथ का लिखा हुआ है | 

मिताक्षर में लिखा है:-

सन्धि-विग्रह्कारी तु भवेद्यत्तस्य लेखकः |
स्वयं राजा समादिषतः सा लिखेद्राज शासनं ||

अर्थात जो रजा का सन्धि-विग्रह्कारी लेखक होगा, वाही राजा के अनुशार राज शासन लिखेगा |
मनुसंहिता (6/54,56) के अनुसार–सुप्रतिष्ठित वेदादि धर्मशास्त्रों में पारदर्शी, शुर और युद्ध विद्या में निपुण और कुलीन ऐसे सात-आठ मंत्री प्रत्येक राजा के पास होने चाहिए | राजाओं को सन्धि विग्रह आदि की सलाह उन्ही बुद्धिमान सचिवों से लेनी चाहिए |

‘मिताक्षरा’ में विध्नानेश्वर ने लिखा है, जिसके अनुसार राजा के सात-आठ मंत्री रहते थे, वे सब ही ब्राहमण नहीं थे | क्योंकि उसके बाद ब्राहमण से क्या क्या विचार लेंगे यह भी लिखा था | यही भाव याग्यवलक्य पुराण के प्रथम अध्याय के 112वें श्लोक का भी है –

पुरोधाच प्रतिनिधिः प्रधानस्सचिवस्तथा |69|
मंत्री च प्राडविवाकश्चपंदित्श्च सुमन्त्रकः|

अमात्यो दूत एत्येता राज्ञो प्रकृतयो दश ||70||
दश प्रोक्ता पुरोद्याद्या ब्राहमण सर्व एव ते |

अभावे क्षत्रिया योज्यास्तदभावे तयोरुजा  ||4/8||
नैव शुद्रास्तु संयोज्या गुन्वन्तोअपि पार्थिवेः|

(द्वितीय अध्याय) 

अर्थात – पुरोहित, प्रतिनिधि प्रधान, सचिव, मंत्री प्राद्विवाक, पंडित, सुमंत्र, अमात्य और दूत- ये दश व्यक्ति राजा की प्रकृति हैं | उक्त पुरोहित आदि दशो लोग ब्राहमण होने चाहिए, ब्राहमण के आभाव में क्षत्रिय, क्षत्रिय के आभाव में वैश्य भी नियुक्त हो सकेंगे | शुद्र गुणवान होने पर राजा उक्त कार्यों के लिए उसे नियुक्त न कर सकेंगे |

शुक्रनीति में सन्धि-विग्रहिक को ‘सचिव’ नाम से उल्लेख किया गया है | यह सन्धि-विग्रहिक शुद्र नहीं हो सकते यह बात भी शुक्रनीति में स्पष्ट लिखा है | हारीत स्मृति (द्वितीय अध्याय) में भी यह बात स्पष्ट रूप से लिखी गयी है |

शुक्रनीति मे (2-266-67) में लिखा गया है –

शास्त्रों दूरं नृपतिष्ठेदस्त्रपाताद्वहिः सदा ||
सस्गास्त्रिदाश हस्तुं तु यथादिष्टन नृपप्रियाः

पंचहस्तं वसैयुर्वे मंत्रिनाः लेखाकासदा ||

अर्थात राजाओं को आग्नेयास्त्र से और जहाँ अस्त्र गिरते हों ऐसे स्थानों से दूर रहना चाहिए राजा से दश हाथ की दुरी पर उनके प्रियशस्त्रधारी, पञ्च हाथ की दुरी पर मंत्री और उनके पास बगल में लेखक रहेंगे |

शुक्रनीति (4/557-58) के अनुसार राजा अध्यक्ष, सभ्य, स्मृति, गणक, लेखक, हेम, अग्नि, जल और सत्पुरुष-ये साधनांग हैं | उपयुक्त प्रमाण से स्पष्ट हो जाता है किजो लेखक राजा के ब्राह्मण मंत्री के पास बैठते थे और जो राजा के अंग गिने जाते थे, वे कदापि शुद्र नहीं हो सकते |
अंगीरा स्मृति के अनुसार ब्राह्मण का शुद्र के साथ बैठना निषिद्ध था | इस स्थिति में हिन्दू राज सभा में ब्राह्मण मंत्री के पास जो लेखक या कायस्थ बैठते थे, वे द्विज जाती के अवश्य होने चाहिए |

शुक्रनीति (2/420) में स्पष्ट लिखा है –

ग्राम्पो ब्राह्मण योग्यः कायस्थों लेखकस्तथा |
शुल्कग्राही तु वैश्योहि प्रतिहारश्च पादजः||

इससे साफ ज्ञात होता है कि लेखक कायस्थ ब्राहमण नहीं, वैश्य नहीं तथा शुद्र नहीं होते थे और जब चार वर्ण माने जाते हैं तब कायस्थ निश्चय ही क्षत्रिय हैं |

कायस्थ क्षत्रिय वर्ण है इनके कई प्रमाण हैं फिर भी कुछ प्रमाण और प्रस्तुत करता हूँ |

पदम् पुराण (उत्तरखण्ड) के अनुसार-

ब्रह्मा ने चित्रगुप्त से कहा :-

क्षात्रवर्णोंचितो धर्मः पालनीयो यथाविधि|
प्रजन सृजस्व भो पुत्र भूमिभार समाहितम ||

अर्थात तुम वहां क्षत्रिय धर्म का पालन करना और पृथ्वी में बलिष्ठ प्रजा उत्त्पन्न करना |
कमलाकरभट्ट कृत बृहत्ब्रहमखंड में लिखा है –

भवन क्षत्रिय वर्णश्च समस्थान स्मुद्भावत |
कायस्थः क्षत्रियः ख्यातो भवान भुवि विराजते ||

व्यवस्था दर्पण श्यामचरण सर्कार द्वारा लिखित तृतीय संस्करण खंड 1 पृष्ठ 684 के अनुसार ब्रह्मा ने चित्रगुप्तवंशकी वृद्धि देखकर एक दिन आनंदपूर्वक कहा – हमने अपने बाहू से मृत्युलोक के अधीश्वर रूप में क्षत्रियों की श्रृष्टि की है हमारी इक्षा है की तुम्हारे पुत्र भी क्षत्रिय हों | उस समय चित्रगुप्त बोल उठे – अधिकांश राजा नरकगामी होंगे | हम नहीं चाहते की हमारे पुत्रो में अदृष्ट में भी यह दुर्घटना आन परे |

हमारी प्रार्थना है की आप उनके लिए कोई दूसरी व्यवस्था कर दीजिये | ब्रहमा ने हंसकर उत्तर दिया - अच्छा , आपके पुत्र असि के बदले लेखनी धारण करेंगे | यह बात युक्त प्रदेश के पातालखंड में  मिलती है |
जब संस्कृत कालेज में कायस्थ छात्र लिए जायेंगे या नहीं – बात उठी , उस समय संस्कृत कालेज के अध्यक्ष रूप स्व. ईश्वरचंद विद्या सागर महाशय ने शिक्षा विभाग के महोदय को 1851 की 20वी मार्च को लिखा था |  जब शुद्र जाति संस्कृत कालेज में पढ़ सकते हैं तब सामान्य कायस्थ क्यों नहीं पढ़ सकते |

उसी प्रकार उनके परवर्ती संस्कृत कालेज के अध्यक्ष स्व. महामहोपाध्याय महेश चन्द्र न्यायरत्न महाशय ने तत्कालीन संस्कृत कालेज के स्मृति अध्यापक ‘स्व. मधुशुदन स्मृतिरत्न’ महोदय को कहा था – कयास्थ् जाति क्षत्रिय वर्ण है, यह हम अच्छी तरह समझ सकते हैं | 

उनके परवर्ती अध्यक्ष महामहोपाध्याय नीलमणि न्यायालंकार महाशय ने कायस्थों को क्षत्रिय की भांति स्वीकार किया है | ( इनके द्वारा लिखित बंगला इतिहास द्रष्टव्य )
इसी प्रकार अनेक प्रमाण हैं जिससे यह प्रमाणित होता है की कायस्थ क्षत्रिय वर्ण के अंतर्गत आते हैं |

इनके अतिरिक्त अनेक कायस्थ राजा भी हुए हैं इसका भी प्रमाण प्रचुर मात्र में मिलाता है |
आइने अकबरी के अनुसार दिल्ली में डेढ़ सौ वर्ष से अधिक समय तक कायस्थों का शासन रहा | अवध में सोलह पुश्तों तक कायस्थ ने शाशन किया | बंगाल के राजा तानसेन अम्बष्ट वंशीय कायस्थ थे | बंगाल में गौर वंशियों का शासन सर्वविदित है |